दुनिया की नज़रों से छिपकर,
किसी अंजान सफर पर तू और मैं निकले,
रात 3 बजे किसी ढ़ाबे पर बस जा रुके।।
सर्द रात हो,
मेरे हाथों में तेरा हाथ हो,
कुल्हड़ में चाय हो,
तेरी निगाहों से निगाह टकराई हो।।
गप-शप हो जमकर,
बस तुझे देखता रहूँ साँसे थामकर।।
फिर तू मुस्कुराए,
और बोले- अच्छी बनी है चाय।
हवा चले सरर से,
और तू ठिठुर जाए।।
तू बोले- ठण्ड लग रही है,
चलो बस में वापस चला जाए।।
😏mयंक