#523. नौकरी का फेर…


गर पता होता की बड़ा होकर इस 9 से 5 के फेर में फंसकर रह जाऊंगा।

तो कभी बड़े होने की ख्वाईश ही नही करता।।

💝मयंक 

6 thoughts on “#523. नौकरी का फेर…

  1. यही तो विङंबना है। बचपन में बङे होने की चाह होती है अौर बङे होने पर बचपन के दिन याद आते हैं।

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    • सही कहा आपने।
      जो पास नही उसे पाने की चाहत रखते है,
      पहले खुद हाथ से वक्त की रेत को फिसलने देते है,
      और फिर बाद में पछतातें हैं।।

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